जिसने मुझे है जनम दिया, नाम एक सुन्दर सा दिया
धुप में, बरसात में छाया मिली मुझे आंचल की
अंगुली थमा कर अपनी, चलना मुझे है जिसने सिखाया
हर मुश्किलों के रास्तो में, जिसने मुझे है ठहरना सिखाया
रंगबिरंगी इस दुनिया में, रंगों में फर्क मुझे है जिसने बताया
ये लेख मेरे है उनकी देन जिसने मुझे है लिखना सिखाया
छोड़ निवाला अपने मुहं का, भर पेट खिलाया खूब है मुझको
रात को सारी जाग के माँ ने, गोद में अपनी सुलाया है मुझको
देर से सोती पहले उठती, टब में बिठा कर नहलाया है मुझको
बुरी नज़र सब दूर रहे, वो काला तिलक लगाती है मुझको
मेरे रोने पर क्यों जाने भींग है जाता उनका आंचल
कैसे में इन बातो को समझू, मन तो अभी मेरा है चंचल
खुद सारे सपने छोड़े मुझको बस जीना सिखलाया
कितना समझा, कितना लिखा, माँ शब्द को समझ न पाया
मेरी कविता, मेरे शब्द, मेरे विचार और शब्दकोष
नहीं बता सकते वो पूरी, परिभाषा उस माँ की
माँ को परिभाषित करना भला कहाँ संभव है...
जवाब देंहटाएंसमीर जी आपके आगमन पर बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा अपने
बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंमाँ को नमन!
माँ आखिर माँ होती है ......सुंदर भावनाएं अभिव्यक्त की हैं आपने आपका आभार
जवाब देंहटाएंमां पर लिखा गया ...कहा गया हमेशा बेहतरीन होता है .
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