स्थान: संगम विहार, नयी दिल्ली
वोही रोज़मर्रा की तरह पहले तो मेट्रो में दफ्तर से साकेत तक जाना फिर बस में धक्के खा कर घर पोहुचना येही जिंदगी रह गयी है कल 24 जून यानि शुक्रवार रोज़ की ही तरह बस से उतरा घर जाने के लिए क्यों की मेरा स्टैंड आ गया था संगम विहार जहाँ मेरा घर है पहले तो उतरते के साथ पानी पिया क्यों की गर्मी के मारे काफी बुरा हाल हो जाता है फिर सड़क पार करके जाने लगा जब में दूसरी तरफ पोहचा तो देखा की एक बस खड़ी थी शायद 463 थी आनंद विहार से आंबेडकर डिपो तक की उसके बहार काफी लोगो की भीड़ लगी थी और काफी शोर भी हो रहा था मै अनायास ही सोचने लगा की पता नहीं क्या हो गया किसी को कोई दिक्कत तो नहीं है बस यही सोच कर जाने लगा की कोई जानने वाला तो नहीं मन मै येही सोच रहा था की कोई जानने वाला न हो. वहां पोहचा तो एक दो लोगो से पूछा पर वो तो देखने मै इतने व्यस्त थे की जैसे कोई जादूगर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा हो फिर क्या? अपने आप ही समझने का प्रयास करने लगा कुछ समझ आ भी रहा था और नहीं भी माहोल कुछ ऐसा था की एक तरफ एक बालक करीब 14-15 वर्ष का होगा वो रो रहा था और एक लड़के को दो लोग मार रहे थे
वोही रोज़मर्रा की तरह पहले तो मेट्रो में दफ्तर से साकेत तक जाना फिर बस में धक्के खा कर घर पोहुचना येही जिंदगी रह गयी है कल 24 जून यानि शुक्रवार रोज़ की ही तरह बस से उतरा घर जाने के लिए क्यों की मेरा स्टैंड आ गया था संगम विहार जहाँ मेरा घर है पहले तो उतरते के साथ पानी पिया क्यों की गर्मी के मारे काफी बुरा हाल हो जाता है फिर सड़क पार करके जाने लगा जब में दूसरी तरफ पोहचा तो देखा की एक बस खड़ी थी शायद 463 थी आनंद विहार से आंबेडकर डिपो तक की उसके बहार काफी लोगो की भीड़ लगी थी और काफी शोर भी हो रहा था मै अनायास ही सोचने लगा की पता नहीं क्या हो गया किसी को कोई दिक्कत तो नहीं है बस यही सोच कर जाने लगा की कोई जानने वाला तो नहीं मन मै येही सोच रहा था की कोई जानने वाला न हो. वहां पोहचा तो एक दो लोगो से पूछा पर वो तो देखने मै इतने व्यस्त थे की जैसे कोई जादूगर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा हो फिर क्या? अपने आप ही समझने का प्रयास करने लगा कुछ समझ आ भी रहा था और नहीं भी माहोल कुछ ऐसा था की एक तरफ एक बालक करीब 14-15 वर्ष का होगा वो रो रहा था और एक लड़के को दो लोग मार रहे थे