शनिवार, 25 जून 2011

मेरे देश का एक कड़वा सच

स्थान:  संगम विहार, नयी दिल्ली

वोही रोज़मर्रा की तरह पहले तो मेट्रो में दफ्तर से साकेत तक जाना फिर बस में धक्के खा कर घर पोहुचना येही जिंदगी रह गयी है कल 24 जून यानि शुक्रवार रोज़ की ही तरह बस से उतरा घर जाने के लिए क्यों की मेरा स्टैंड आ गया था संगम विहार जहाँ मेरा घर है पहले तो उतरते के साथ पानी पिया क्यों की गर्मी के मारे काफी बुरा हाल हो जाता है फिर सड़क पार करके जाने लगा जब में दूसरी तरफ पोहचा तो देखा की एक बस खड़ी थी शायद 463 थी आनंद विहार से आंबेडकर डिपो तक की उसके बहार काफी लोगो की भीड़ लगी थी और काफी शोर भी  हो रहा था मै अनायास ही सोचने लगा की पता नहीं क्या हो गया किसी को कोई दिक्कत तो नहीं है बस यही सोच कर जाने लगा की कोई जानने वाला तो नहीं मन मै येही सोच रहा था की कोई जानने वाला न हो. वहां पोहचा तो एक दो लोगो से पूछा पर वो तो देखने मै इतने व्यस्त थे की जैसे कोई जादूगर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा हो फिर क्या? अपने आप ही समझने का प्रयास करने लगा कुछ समझ आ भी रहा था और नहीं भी माहोल कुछ ऐसा था की एक तरफ एक बालक करीब 14-15 वर्ष का होगा वो रो रहा था और एक लड़के को दो लोग मार रहे थे

शनिवार, 18 जून 2011

मौत की दौड़:- भाग दो:

"हे भगवन अब ओर क्या दिखाना बाकी है" मेरे मुख से स्वतः ही ये शब्द फूट पड़े ओर मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था की मेरी छाती फट गयी है पर में उसे देखने की भी हालत में नहीं था अपने को सँभालने की भरपूर कोशिश कर रहा था अब तो बस उस पर ही भरोसा था....

भाग दो से आगे............

मेरी अचानक ही आँख खुली तो मेरे सामने खुला आस्मां नज़र आ रहा था, मेने अपनी आँखों को झपक कर समझने की कोशिश करी की में किधेर हूँ

मौत की दौड़:- भाग एक:

सर पर चिलमिलाती धुप पड़  रही थी, गर्मी के मारे बुरा हाल था पसीने से मेरा बदन पूरा तर था ऐसा लग रहा था की में बारिश में भीग कर आ रहा हूँ और तो और प्यास भी इतनी लग रही थी की चलते हुए मेरे पैर काँप रहे थे मेरे पास जितना भी पानी था वो में पहले ही खत्म कर चुका था पता नहीं क्यों इतनी रौशनी होने के बावजूद भी मेरी आँखों के सामने अँधेरा सा ही लग रहा था बस मेरे अंतर्मन में यही विचार आ रहा था की कंही से एक मात्र बूंद पानी की मिल जाये पर इतने बड़े सुनसान रेगिस्तान में दूर तक पानी तो छोडो एक इंसान भी नज़र नहीं आ रहा था मेरे कदम