रविवार, 6 जनवरी 2013

क्योकि कानून में नहीं "नेकी कर भूल जा" की इजाजत

लोग आते, रुकते, देखते और आगे बढ़ जाते है। चाहे आप कितने भी खून से लथपत रोड किनारे क्यो न पड़े हो। शर्मनाक है की राजधानी जैसे शहरो मैं ऐसा ज्यादातर होता की लोग रोड दुर्घटनायो मैं मदद करने से कतराते है कोई भी हाथ लगाने तक को तैयार नहीं होता।

मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहा क्योकि हाल ही मे दिल्ली में हुयी घटना में ऐसा देखा गया बल्कि इसलिए कह रहा हूँ क्योकि मदद करने के बाद क्या होता है उसका मे भुक्त भोगी हूँ

आखिर क्यो होता है ऐसा।

क्योकि कानून में नहीं "नेकी कर भूल जा" की इजाजत

धर्म भी कहता है की वो लोग महान है जो जरूरतमंदों की मदद तो करता है परंतु बदले में कुछ नहीं चाहता। नाम भी नहीं। बाहर के कई देशो मे ऐसे लोगो की पहचान गुप्त रखने का प्रावधान है। लेकिन भारत में उल्टा है यदि आप किसी घायल या पीड़ित की मदद की तो पुलिश गवाह बना लेती है, फिर चश्मदीद गवाह बनने का दबाब। कोर्ट में 'तारीख-पर-तारीख' का फेर। यानि नेकी करने के बाद पुलिस और कानून उसे भूलने नहीं देते। वक्त-बेवक्त बयान के लिए याद किया जाता है। प्रभावशाली आरोपी के गुस्से का सामना भी करना पड़ता है। सर्वे कुछ ऐसा बताते है की 50 प्रतिशत से ज्यादा दुर्घटना के बाद मृत्यु सिर्फ इस वजह से हो जाती है की उन्हे समय पर ऊपचार नहीं मिल पता। हलाकी पिछले कुछ वर्षो मे ऐसा कानून बनाने पर ज़ोर भी दिया गया पर गत अक्तूबर-2012 में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा की यदि ऐसा कोई कानून बना तो हमलावर ही पीड़ित को अस्पताल छोड़ेगा फिर बिना पहचान दिये चला जाएगा।

अब हमारी माननीय सरकार से ये पुछो की आरोपी को पकड़ने से ज्यादा जरूरी पीड़ित की जान नहीं बचानी चाहिए।

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