क्या सही मे गांधीगिरी या महज़ भेड़चाल
या कहे की यही वक़्त भ्रष्ट का ये काल है
जाना नहीं लोकपाल इसमे है क्या बवाल
चल दिये पीछे-पीछे, सभी यहाँ बेहाल है
क्या सही में लोकपाल बदलेगा मेरा देश
या कहूँ की ये भी कोई सरकारी चाल
अण्णा ने जाना इसे फिर पहचाना इसे
बैठे फिर अनशन पर, देश भी अब साथ है
क्या है “लोकपाल” और क्या है “जन लोकपाल”
जनता के दिल मे देखो ये भी एक सवाल है
लोकपाल के कानून मे है पूरा झोल ही झोल
जन लोकपाल ही खोलेगा सब मंत्री की पोल
पोल का ये ढ़ोल कभी खुल न जाए इसलिए
संसद के अंदर मची एकदूजे में टालमटोल
कब तक इसे टालेंगे ये कब नहीं लाएगे ये
देखने ने को हम भी बैठे भ्रष्टों के दिल का मोल
अंतिम चार पंक्ति, अण्णा जी और पूरे देशवासियों के लिए खासतौर पर
अण्णा को मेरा नमन, जनता को मेरा नमन
नमन मेरा देश को और माता भारती को है
ठाना जो सबने मनमे माना जो सबने मनमे
अंत तक तुम रखना इसे दिल संभाल के
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