सोमवार, 8 अगस्त 2011

--एक फोन कॉल--

"हैलो दीपक जी से बात हो सकती है" फोन के दूसरी तरफ से किसी लड़की की आवाज़ थी कुछ पंजाबी टाइप

मैं: हाँ बोल रहा हूँ कहिए क्या काम है

"आहाना बोल रही हूँ चंडीगढ़ से" लड़की बोली

मैं: हांजी बोलिए

आहाना: आज दिन मे अपने वोडाफ़ोन मे फोने किया था तो मेरे से ही बात हुयी थी।

मैं: ओह हांजी



आहाना: आपके पास वोडाफ़ोन से एक मैसेज आया होगा की आपने आहाना से बात की..

मैं: हांजी हांजी आया तो क्या उसका जवाब देना ज़रूरी होता है क्या..

आहाना: नहीं ज़रूरी तो नहीं होता पर मुझे उसकी ज़रूरत है इसीलिए ऑफिस से बाद मे आपको अपने पर्सनल मोबाइल से कॉल कर रही हूँ।

मैं: अच्छा जी

आहाना: आप बस उस पर "YES" टाइप करके उत्तर कर दीजिये।

मैं: हाँ मैं कर दूंगा।

आहाना: शुक्रिया जी। और अगर आपको कभी वोडाफ़ोन संधर्भ मे कोई भी काम हो तो मुझे काल कर लेना मेरे फोन पर।

मैं: ओह ऐसा क्या फिर तो बहुत अच्छी बात है।

आहाना: अच्छा तो मे फोन रखती हूँ आप संदेश कर देना।

मैं: ओके बाइ

आहाना: बाइ बाइ

और इसके बाद आहाना ने फोन काट दिया। क्या यार क्या आवाज़ थी पर मेरे लिए एक सवाल खड़ा कर दिया की ऐसा भी होता है क्या? खेर मुझे क्या करना टोल-फ्री ही तो है सो झट से मेने उस संदेश का उत्तर "YES" मे कर दिया और सोचा क्यो न आहाना के नंबर को अपने फोन लिस्ट मे सेव करलु शायद कभी काम आ जाए और "Gul VodaExe" के नाम से सेव कर लिया और उसको भी एक संदेश कर दिया की मेने उत्तर कर दिया है। वो क्या होता है न की लड़को को थोड़ा सा प्रभाव डालने की आदत होती है वो मेने भी वही किया।

फिर उस दिन के बाद मैं भी इस वार्तालाप को भूल चुका था क्योकि मेने भी कभी संदेश नहीं भेजा था और उधर से भी कोई नहीं आया था लेकिन कहते है न की अगर भगवान ने हमारी बात कारवाई है तो ज़रूर कोई तो बात होगी। मैं भी फालतू मे सोचे जरा था और वैसे भी फिजूल मे सोचने के पैसे थोड़े ही लगते है।

एक दिन मैं सुबह उठा और अपना फोन उठाया और अपने सहकर्मी को फोन किया लेकिन ये क्या मेरी जावक कॉल्स (outgoing calls) तो वोडाफ़ोन वालों ने बंद कर रखी थी वोडाफोन को काल करने लगा लेकिन लग ही नहीं रहा था परेशान हो कर फोन काट कर रख दिया। अपने दफ्तर के लिए तैयार होने लगा। तैयार ही हो रहा था तो एक दम से आहाना की याद आई मेने मन मे सोचा भई वाह भगवान जी ने भी इसीलिए हमारी बात कारवाई होगी मेने तुरंत अपने फोन से उसका नंबर निकाला और दूसरे फोन से उसको एक संदेश भेजा। कोई जवाब न आया काल किया तो पता चला की फोन बंद है। सिवाए अफसोस करने के आलवा मेरे पास कोई चारा न था।

फिर क्या दफ्तर के लिए निकल गया और दफ्तर पाहुच कर वोडाफ़ोन को काल किया तो पता चला की मेने सीमा से अधिक फोन किए है इसीलिए मेने तुरंत वोडाफ़ोन जा कर पैसे जमा करवाए और मेरा फोन चालू हो गया। ये बात भी आई गयी हो गयी।

करीब उस घटना के एक महीने बात सुबह सुबह मेरे पास एक काल आया मे सो रहा था उस वक़्त शायद  6.30 बज रहे होंगे मेने अपना फोन उठाया तो देखा आहाना का काल था पर मेरे उठाने पहले मिस कॉल मे चला गया क्या करता वापस फोन किया।

मैं: हैलो
आहाना: हैलो जी क्या हाल है
मैं: अच्छा हूँ क्या बात है मेने आपको फोन किया था और एक संदेश भी भेजा था पर आपका कोई जवाब नहीं आया।
आहाना: नहीं जी अपने मेरे पास कोई नहीं भेजा। क्यो क्या हुआ क्या भेजा था।
मैं: वो कुछ नहीं आउटगोइंग बंद हो गयी थी इसीलिए, पर अब शुरू हो गयी है
आहाना: अच्छा जी
मैं: और बताइये क्या हाल है आपके आप तो भूल ही गए हमको
आहाना: मैं कहाँ भूली हूँ आप ही भूल गए हो
मैं: नहीं अगर मे भुला होता तो आपको संदेश नहीं भेजता और फिर हम दोनों बस अगले एक घंटे तक एक दूसरे के हाल चाल ही पुछते रहे क्यो की और क्या बात करते और हाँ काम के बारे है थोड़ा बहुत।

मैं: वो अपने मुझे "YES" जवाब देने के लिए कहाँ था ऐसा क्यो
आहाना: वो इसीलिए की यदि कोई ग्राहक हमे "NO" लिख कर भेज देता है तो उसके बदले मे हम लोगो को ग्यारह "YES" लाने पड़ते है बस इसीलिए।

मैं: ओह (मेरे पास सिवाए इसके और कुछ नहीं था कहने को)

(थोड़ी देर और हमारी बात चली होगी फिर वो बोल)

आहाना: चलो मेरा दफ्तर आ गया है अब फोन की बैटरी जमा करवानी होती है
(और बाइ बोल कर उसने फोन रख दिया फिर दिन भर हमारे बीच कोई भी बात नहीं हुयी मैं भी अपने काम मैं लग गया।)


करीब शाम को 5 बजे फोन की घंटी ने मेरा ध्यान भंग किया देखा आहाना का ही काल था सोचा उठा लू या वापस फोन करू। तो काट कर वापस कॉल किया।

मैं: हांजी क्या हाल
आहाना: अच्छे है जी आप सुनायों आपके क्या हाल है

(बस थोड़ी देर तो हाल चाल पूछने मे निकल ही जाती है और उसके बाद काम के बारे मे क्या किया क्या नहीं और शायद आज वो अपनी किसी दोस्त के साथ थी)

मैं: कोई है क्या साथ मे
आहाना: हाँ मेरी सहेली है बात कराऊ क्या
मैं: नहीं जी शुक्रिया, आप से ही बात हो रही है इतना काफी है किसी और से बात नहीं करनी जी।
(शायद वो इस बारे मे अपनी सहेली को बता रही थी)

बातों का सिलसिला तो बस युही चल निकला रोजाना सुबह शाम बात होने लगी और संदेश पर संदेश और फिर एक दिन मिलने का फैसला किया गया। इतवार का दिन जिस दिन FRIENDSHIP DAY भी था सो पक्का हो गया।

०७ अगस्त का दिन सुबह ६ बजे निकल पड़ा घर से चंडीगढ़ की यात्रा पर घर से बस ले कर पाहुच गया मेट्रो स्टेशन और कश्मीरी गेट के लिए मेट्रो ले ली करीब ४० मिनट के सफर के बाद मेरा गंतव्य

आ गया और मैं मेट्रो स्टेशन से बाहर आ कर बस लेने के लिए चल पड़ा बस अड्डे। यहाँ की हालत देख कर तो ऐसा लग रहा था की मे कही खंडर मे आ गया हूँ नवीकरण का कार्य जो प्रगति पर था इसी कारण कई बसो के रास्तो मे तबदीली की हुयी थी। चंडीगढ़ के काउंटर पर पोहुच कर पता किया तो एसी वाली बस तो ८ बजे है और बिना एसी वाली चलने को खड़ी थी तो उसी मे बेठ गया। खाली थी तो सीट भी पसंद करने का अवसर मिल गया की किस पर बेठू। एक तीन लोगो के बैठने वाली सीट पर बैठ की अपने पैर लंबे करके लेट सकु अगर कोई नहीं आ कर बैठा तो और हुआ भी वही कोई आ कर नहीं बैठा बस ज़्यादातर खाली थी। कई जगहो पर लोग आए भी बैठने लेकिन कुछ दूरी पर उतर जाते। जैसे तैसे कुछ खाते, कुछ पीते, लेटते बैठते, सोते जागते चले जा रहा था अपने गंतव्य की ओर। और आहाना को भी संदेश भेज कर बताता रहा की कहाँ तक पोहुच गया। करीब छह घंटो की मुश्किल यात्रा के बाद पोहच गया चंडीगढ़। मुश्किल इसीलिए की रेल से आना ज़्यादा बेहतर है कम से कम थकान तो नहीं होती। और मैं मे वैसे भी मसाज वागेरह करवाके आया था की अपने आपको बेहतर दिखा सकु किस लिए ये तो पता नहीं। अगर किसी कोई मालूम चले तो बता दीजिएगा।

सैक्टर 17 के बस स्टैंड पर बस ने उतारा। उतरकर सबसे पहले तो अपनी खराब सी हालत को सुधारा फिर फोन किया आहना को तो पता चला की अभी तो एक घंटे से ज़्यादा लगेगा उन्हे पहुचने मे लेकिन बीच बीच मे संदेश के द्वारा या कॉल के द्वारा बातचीत हो ही रही थी। घंटो इंतज़ार के बाद वो घड़ी आ ही गयी।

आहना: कहाँ खड़े हो आप
मैं: काउंटर नंबर पाँच के पास
आहना: अच्छा मे आती हूँ आपने क्या पहना है
मैं: सफ़ेद रंग का कुर्ता (जानबूझ कर झूठ बोला की जिससे मैं पहले पहचान सकु, अब ये नहीं पता की उसका क्या बर्ताव था इस बात को सुन कर)
आहना: किधर खड़े हो नज़र नहीं आ रहे

फिर काफी देर की मश्कत के बाद, कभी इस काउंटर तो कभी उस काउंटर समझ ही नहीं आ रहा था की हम लोग है किधर, फिर पता चला की आहना सैक्टर 43 से बस स्टैंड पर है और मैं 17 के, फिर

क्या वहाँ से आहना को फिर एक और बस बदल कर आना पड़ा, मुझे हंसी भी आ रही थी और अजीब भी लग रहा था ये नहीं पता क्यो। पूरे दो घंटे इंतज़ार करने के बाद हम दोनों ने एक दूसरे को देखा। पर इस बीच मुझे ये तो अहसास हो ही चुका था की पंजाबी कुड़ी की तरह ये भी गाली देती है कम या ज़्यादा ये नहीं पता।

उफ मैंने जैसे सोचा था आहना तो बिलकुल अलग निकली एक आधुनिक युग की खूबसूरत लड़की पर मुझे आहना मे जो सबसे खास बात लगी वो की उसने कोई मेकअप नहीं किया था। बिलकुल साधारण कोई दिखावा नहीं काले रंग का ट्राउसर और लाइट पिंक रंग के शर्ट जैसा की उसने बताया ये उसके दफ्तर का ड्रेस कोड है अगर मे शारीरिक रूप रेखा की बात करू तो मेरी और उसकी लंबाई मे कोई ज़्यादा फर्क नहीं लगा मुझे और बिलकुल स्लिम बस एक बार तो मे देखता ही रह गया। चेहरे पर एक अलग ही चमक थी मैं किसी तरह उसका चेहरा पड़ना चाहता था की मुझे देख कर उसे कैसा लगा पर इतने मे मे आहना की आवाज़ ने मेरा ध्यान भंग किया "हाय मैं आहना" फिर आपने आप को संभालते हुये उसके बड़े हुये हाथ से हाथ मिलाया और अपना भी परिचय दिया। हालाकि हम लोगो को परिचय की ज़रूरत नहीं थी पर फिर भी प्रथम बार मिल रहे थे शायद इस लिए भी हो सकता है।

मेरा मन तो बस उसको देखने भर का कर रहा था पर ज़्यादा देख भी नहीं सकता था बस वो चलने लगी मैं भी उसके साथ चलने लगा उसको पानी दिया पीने को। शायद वो मेरे ऊपर गुस्सा थी क्योकि एक तो इतनी गर्मी ऊपर से उसे मुझ तक पहुचने मे काफी तकलीफ हुयी। आहना ने मुझे बताया भी था की वो रोजाना चंडीगढ़ आती है परंतु कभी उसे रेल्वे फाटक बंद नहीं मिला पर आज मिल गया वो भी दो दो ऊपर से मे कही और था और वो कही और देख रही थी। पर फिर भी उसके चेहरे पर एक अलग सी ही चमक थी। हम लोगो ने सुखना लेक की ओर रुख किया और उसके लिए एक ऑटो मे बैठे और चल दिये। उसका बोलने का तरीका, उसका पहनावा, उसकी समझ, और सबसे अलग वो खुद जो देखते ही बनती थी। मैं तो बस उसको देखे जा रहा था। और ज़्यादा देख भी नहीं सकता था की कही आहना बुरा न मान जाए पर कहते है न की दिल है की मानता ही नहीं। आहाना एक दम खुले विचार वाली लड़की है जो बोलना है खुल कर सामने बोलना। बस आहाना की एक बात मुझे बुरी लगी मोबाइल मे टुकुर टुकुर अंगुलिया चलाने की हालाकी मुझे कोई आपति नहीं है पर थोड़ा तो अजीब लगा ही पर उसकी बाकी सब बातों ने मुझे उसकी इस बात की ओर ध्यान देने ही नहीं दिया। मैंने तो सोचा था की कोई मेकअप दार पंजाबी लड़की लंबे से बालो वाली सूट पहन कर आएगी पर आहाना तो बिलकुल ही अलग निकली।


"पहली नजर में प्यार" इस शब्द का मैंने अपनी जिंदगी मे कई बार उचारण किया कई बार सुना भी परंतु कभी समझा नहीं की आखिर ये होता क्या है लेकिन आहाना से मिलने के बाद मुझे ऐसा लगा की  जिसने भी ये पंक्ति लिखी है क्या खूब लिखी है। क्योकि मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा था की मुझे भी "पहली नजर में प्यार" हो गया हो। पर कुछ कह नहीं सकता था इसीलिए अपनी भावनाओ को मन मे ही दबा कर रखा। मैं आहाना का भी विचार जानना चाहता था। लेक भी आ गया हम लोग अंदर गए वहाँ तो काफी भीड़ थी सूरज सर पर होने के बावजूद काफी लोग बोटिंग कर रहे थे। हम लोग भी एक तरफ छाया देख कर बैठ गए और बाते करने लगे मैं तो बस आहाना को सुनना चाहता था

कुछ खाया थोड़ा घूमे कब वक़्त निकलता गया पता भी नहीं चला आहाना ने मेरे लिए एक गिफ्ट भी लिया जो मैंने बड़ा संभालके रखा है मैंने पहले ही फोन पर आहाना से वादा किया था की friendship day पर फूल देने आऊँगा और दिया भी। अब तो शाम होने लगी थी उसको वापस भी जाना था बस ये सोच कर मन मे एक ही ख्याल आया

एक वक़्त जुदाई का हर वक़्त तनहाई का
मिल कर बीझाड्ने का गम नजाने क्यो आंखे हो जाती है नम
हर लम्हो को समेटना चाहता हूँ बस एक बार
और जी भर कर देखना चाहता हूँ

हम लोग फिर वहाँ से बस मे बैठे फूल मार्केट के लिए बस की एक दम लास्ट वाली सीट पर वो मेरे राइट साइड मे बैठी थी और न जाने क्या बोल रही थी मैं तो बस उसे देखे जा रहा था कुछ बोलने का मन नहीं कर रहा था धीरे धीरे अंधेरा भी हो रहा था। फिर थोड़ी देर मे हम लोग फूल मार्केट भी पहुच गए। मैं तो उसे लाल गुलाब देना चाहता था पर उसने कहा पीला कहा पर फिर भी उसने खुद पसंद करके लाल भी लिए और पीले भी। शायद उसे लाल ही पसंद होंगे पर बतोर दोस्त तो पीले या पिंक ही दिये जाते है। उसके लाल रंग के गुलाब लेने का कारण क्या था ये तो पता नहीं। मैंने उसे वो फूल दिये और मुझे मालूम है की वो पल मेरे लिए कितना सुनहरा था गुलाबो की तरह खुसबु बिखेरने वाला पल। उसकी क्या फीलिंग थी वो तो मुझे मालूम नहीं पर उसे देख कर ऐसा ही लग रहा था की शायद उसे भी अच्छा लगा। हम लोगो ने फिर से बस ली घर जाने के लिए मुझे आगे से दिल्ली की बस लेनी थी दोनों का रास्ता एक ही था इसीलिए एक ही बस मे बैठ गए। फिर से आखिरी वाली सीट पर इस बार वो मेरे लेफ्ट साइड मे थे और मे उसे देखे जा रहा था वो बोले जा रही थी पता नहीं क्यो मेरा कुछ बोलने का मन नहीं कर रहा था सिर्फ उसे जी भर कर देखना चाहता था पता नहीं फिर कब मोका मिले।

आहाना ने मेरे से कई बार पूछा भी की ऐसे क्यो देख रहे हो लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं था बस पल पल हर पल मेरी भावना उसके लिए बदलती जा रही थी शायद मुझे भी पहली नज़र मे प्यार हो गया था पर आहाना को कैसे कहु उसे तो शायद इस शब्द से ही चिड़ थी उसे लगता था की एक प्रेमी अपनी प्रेयशी को बंदिश मे रखता है पर मेरा सोचना तो बिलकुल अलग है प्रेम का ये बिलकुल भी मतलब नहीं की सामने वाला भी आपसे प्रेम करे और करे भी तो उसकी अपनी जिंदगी है वो जैसे जीना चाहे जिये। काश उसे ये बात समझ आती खेर प्रेम के लिए कोई रेखाए नहीं होती उसे तो जब होना होता है तब हो जाता है वही मेरे साथ हुया।

मेरा मन कर रहा था की उसे और करीब से छू कर देखू पर मन मे डर था की कही वो बुरा न माने पर जैसे तैसे हिम्मत करके मैंने उसके हाथ पर एक किस किया बस खाली थी और हम लोग सबसे आखिरी सीट पर बैठे थे जहा हमे देखने वाला कोई नहीं था फिर भी आहाना ने एक बार सबकी तरफ देखा और उसने भी धीरे से मेरे हाथ पर जवाब मे किस किया इसका क्या अर्थ था मुझे नहीं मालूम बस एक मीठा सा अहसास छोड़ गया मेरे रॉम रॉम मे। मैं बस उसे देखता ही रहा। लेकिन उसने अचानक से बोला उठो मे तो एकदम से डर ही गया पर उसने बोला की अब मुझे उतरना है और आपको अगले स्टैंड पर वहाँ से दिल्ली वाली बस मिलेगी एक बार तो मैं सन हो गया परंतु दोनों की ही मजबूरी थी। मेने उसे जाने का रास्ता दिया और वो दरवाजे पर जा खड़ी हो गयी और स्टैंड आने पर उतर गयी। मुझे लगा था की वो पलट कर देखेगी पर उसने एक बार भी पलट कर नहीं देखा मैं बस अपना सा मन ले कर रह गया और वो अंधेरे मे न जाने कहा गुम होती चली गयी और मे भी अगला स्टैंड आने पर उतर गया अपनी दिल्ली वाली बस लेने के लिए।

थोरी देर हमारी संदेश के द्वारा बात होती रही परंतु ज़्यादा देर न हो सकी और वो GOOD NIGHT बोल कर सो गयी। मैं भी बस दिल्ली वाली बस ले कर निकाल पड़ा अपने घर के लिए।

घर पहुच कर बस उसी के बारे मे सोच रहा था और पता नहीं कब नींद आ गयी मालूम नहीं चला। सुबह उसी के संदेश के साथ मेरी आँख खुली "good mrng dear" लिखा था मेने भी जवाब मे गुड मॉर्निंग भेजा।

लेकिन पहले जब मे दिल्ली से उस से बात करता था और अब उसमे बोहत ही फर्क है।

न जाने आगे क्या होगा वो तो भगवान ही जानते है।

पर इतना ज़रूर है की मुझे पहली नज़र के प्यार का मतलब अब समझ आया।

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दीपक जैन
०८-अगस्त-२०११

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