मंगलवार, 16 अगस्त 2011

चरणों मे गुरुवर के नमन मेरा बारम्बार








तुम्ही मेरी मंज़िल, तुम्ही हो सहारे
लगादों ये नैया जगत के किनारे
नहीं जान पाया ये कैसा अंधेरा
तुम्हारे बिना गुरुवर नहीं है बसेरा



ये पैसे का मोहजाल, पैसे की माया
भुला क्यो रहा हूँ मैं अपनी ही काया
नहीं जान पाया ये कैसी लड़ाई
मुझे भी पढ़ादो धरम की पढ़ायी

शरण चाहता हूँ चरण मे जगह दो
जिंदगी का धागा मेरा हाथो मे थामलो
यही आस लेकर शरण मे हूँ आया
चढ़ाने को चरणों मे, अर्घ मैं हूँ लाया

तुम्ही मे है रूप उनका, तुम्ही में है छाया
तुम्हारे बिना न मेरा रूप है न काया
तुम्ही मेरे भगवन, तुम्ही मेरे पालनहार
चरणों मे गुरुवर के नमन मेरा बारम्बार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें