सोमवार, 23 जनवरी 2012

अब तो विचारो पर भी रोक लगेगी भईया।

अजीब लगा क्या? अजीब तो लगेगा ही क्योकि अगर आपको कोई बोले के अब आप अपने विचारो को, अपनी सोच को वक्तीगत रूप से प्रस्तुत नहीं कर सकते तो अजीब लगना तो लाज़मी हैं। हमारे माननीय टेलिकॉम मिनिस्टर कपिल सिब्बल जी के बयान से तो ऐसा ही लगता है।


"नई दिल्ली।। टेलिकॉम मिनिस्टर कपिल सिब्बल ने साफ किया है कि इंटरनेट कंपनियों ने आपत्तिजनक कॉन्टेंट पर रोक लगाने की सरकार की अपील अनसुनी कर दी है और इसलिए अब सरकार खुद इस दिशा में जरूरी कदम उठाएगी। उन्होंने कहा कि जो भी जरूरी होगा किया जाएगा, लेकिन सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स और अन्य किसी भी प्लेटफॉर्म पर ऐसे कॉन्टेंट डाले जाने पर हर हाल में रोक लगाई जाएगी।" -  कपिल सिब्बल (सोर्स - नवभारत टाइम्स)

वैसे मुझे नहीं मालूम की उनकी बात किस हद तक सही है या गलत पर इतना ज़रूर मालूम है की आम जनता के लिए इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है जहां पर वो अपने मन का गुस्सा, नाराजगी निकाल सकता है अपने मन के विचारो को बिना किसी डर के व्यक्त कर सकता है क्योकि हर कोई तो संसद के सामने जा कर ढ़ोल नहीं पीट सकता और नाही किसी मंत्री का गला पकड़ सकता है बस इंटरनेट ही एक ऐसा मंच है जहां पर आम इंसान निर्भय हो कर कुछ भी बयान कर सकता है या किसी को कुछ भी कह सकता है हालांकि में ये भी जानता हूँ की हमारे समाज कुछ शरारती तत्व ऐसे भी जो इसका गलत फायेदा भी उठाते है पर इसका मतलब तो ये नहीं की आप आम जनता के ऊपर ही रोक लगा दे।

और मैं कुछ खबरों पर रोशनी डालना चाहूँगा
पहली
एक अण्णा समर्थक ने जब संसद मे जा कर नारे बाजी की तो उसके बाद क्या हुआ सब को मालूम है कोन सा उसे वहाँ रुकने दिया

दूसरी
जब अपने मन की भड़ास निकालने के लिए हरविंदर सिंह ने शरद पवार को थपड़ मारा तो उसके साथ क्या हुआ सब जानते है

तीसरी
एक आरटीआई कार्यकर्ता शहला मसूद की हत्या

ऐसी और भी बहुत सी खबरे सामने आई है की जब आम जनता ने कुछ खुल कर करने की कोशिश की है तो उसका क्या हर्ष होता है हम सब भलीभाँति वाकिफ है। हमारा कानून इतना खतरनाक है की बोलने वाले को या तो पैसे की चमक से दबा दिया जाता है या फिर दबा दिया जाता है। जब ऐसा माहोल हो हमारे समाज मे और हम सब के पास सिर्फ एक ही जरिया हो अपनी बात को रखने का "इंटरनेट" और उस पर भी रोक लगा दी जाए की अगर आप किसी मंत्री के लिए कोई आपतिजनक बात लिखते हो या कोई ऐसे तस्वीर डालते हो तो वो खुद ही हट जाएगी चाहे वो आपकी प्रोफ़ाइल मे हो या फिर पब्लिक डोमैन मे।

कुछ समय पहले में एक तस्वीर देखी थी जिसमे दर्शाया गया था की एक छोटा सा बच्चा फटे हुये कपड़े पहने, हाथ मे रूखी रोटी का टुकड़ा, नंगे पैर - और वो कहना चाह रहा था की मैं भी बड़ा हो कर कसाब बनूँगा कम से कम मेरी सुरक्षा मे 200 कर्मी होंगे और दो टाइम खाना मिलेगा।

थोड़ा अजीब लगा की जिसने भी वो तस्वीर बनाई और इंटरनेट पर डाली उसके दिमाग मे क्या उपजा होगा की वो सोच आई, कारण हमारा कानून, और एक बार ज़रा ध्यान से सोचो की यदि ऐसा कानून आ जाए जिस मे ये तस्वीर आपतिजनक लगे और उस तस्वीर को बनाने वाला उसे किसी के समक्ष न रख पाये तो क्या फिर वो अपनी सोच को अपनी हकीकत की ज़िंदगी मे अपनाने की कोशिश करेगा। क्योकि मैं जहां तक समझता हूँ की यदि कोई अपने मन की सोच को अपने अंदर ही रखता है और समय समय पर बाहर नहीं निकलता तो एक समय ऐसा आता है की उसकी वही सोच एक विकराल रूप ले लेती है।

 शरारती तत्वो को तलाशने के बजाए हर दरवाजा ही बंद कर भले ही आम जनता का अंदर दम घुटे।

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