शनिवार, 18 जून 2011

मौत की दौड़:- भाग एक:

सर पर चिलमिलाती धुप पड़  रही थी, गर्मी के मारे बुरा हाल था पसीने से मेरा बदन पूरा तर था ऐसा लग रहा था की में बारिश में भीग कर आ रहा हूँ और तो और प्यास भी इतनी लग रही थी की चलते हुए मेरे पैर काँप रहे थे मेरे पास जितना भी पानी था वो में पहले ही खत्म कर चुका था पता नहीं क्यों इतनी रौशनी होने के बावजूद भी मेरी आँखों के सामने अँधेरा सा ही लग रहा था बस मेरे अंतर्मन में यही विचार आ रहा था की कंही से एक मात्र बूंद पानी की मिल जाये पर इतने बड़े सुनसान रेगिस्तान में दूर तक पानी तो छोडो एक इंसान भी नज़र नहीं आ रहा था मेरे कदम
बस एक आस लिए अपने आप चले जा रहे थे की तभी आचानक मेरी नज़र सामने पड़ी तो मुझे कुछ दूर पक्षी उड़ते हुए नज़र आ रहे थे मुझे समझ नहीं आ रहा थे की में क्या प्रतिक्रिया दू मनन में कही एक कोने में ये भी डर था की मेरा क्या हश्र होने वाला है पर क्या करता सिवाए चलने के पिछले 40 घंटो से चल ही तो रहा हु इसके अलावा कुछ और कर भी क्या सकता हु रुकू पर फिर आगे चलना है में कुछ सोच रहा था की मुझे ऊपर वाले का एक और प्रकोप महसूस होने लगा मेरी आँखों के सामने इस वक़्त वो मंज़र था जिससे देख कर की की भी रूह काँप जाये मुझे ऐसा लग रहा थे की मेरे सामने से मेरी मौत धीरे धीरे मेरे करीब आ रही है वंहा दूर ऐसा लग रहा थे की रस्ते में एक बड़ी सी दिवार बनाई हुयी है पर शायद वो रेतीला तूफ़ान है मेरे पास कोई चारा नहीं था उस से बचने का उस वक़्त मेरे दिमाग में किसी की कही बात याद आ रही थी की "जब मरना ही है तो क्यों न लड़के मरे" पर जिसे देख कर ही मेरी रूह काँप गयी हो तो भला उसका सामना में क्या खाक करूँगा पर मरता क्या न करता कंही छुप भी तो नहीं सकता था यहाँ पर तो छुपने के नाम पर एक पत्थर का टुकड़ा भी नहीं था बस वहो था तो में अपने साथ लाया था तीन बांस के डंडे, शाल और कुछ छोटा मोटा सामान जो बेग में था में फिर जूट गया मौत का सामना करने के लिए हलाकि मुझे इस के लिए ट्रेनिंग थी गयी थी पर ट्रेनिंग और हकीकत में बोहत फर्क होता है किसी तरह में कोशिश कर इन तीनो डाँडो को मेने असामन की तरह ऊपर करके तिकोने की आकृति में गाड़ दिया और जिस और से तूफ़ान आ रहा था उस और शाल बांध थी और उसके दूसरी ओर आ कर बैठ गया ओर तूफ़ान के आने का इंतज़ार करने लगा कुछ समय पश्चात् हवा ने अपने गति बदन शुरू कर दी में राइट में गाड़ी उन बांस के डाँडो को कास कर पकड़ कर बेथ गया, धीरे धीरे हवा में उडती राइट ने भी अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया मेने एक नज़र ऊपर उठा कर तूफ़ान का जाएजा लेने की कोशिश करी तो मानो तूफ़ान मेरे से कह रहा हो की मेरे सामने तो अच्छे अच्छे नतमस्तक हो जाते है तो तू क्या चीज़ है मेरे मुंह पर उस उडती हुयी राइट के इतने थपेड़े पड़े की मेने ज़ल्दी से अपना सर फिर से निचे कर लिया ओर तूफ़ान के जाने का इंतज़ार करने लगा, धीरे धीरे हवा अपने दानवी रूप में आती जा रही थी ऐसा लग रहा था की मुझे किसी ने भट्टी में झोक दिया हो बस अपने ईष्ट भगवन को याद करता हुआ येही प्राथना कर रहा था की किसी तरह ये तूफ़ान थम जाये परन्तु मेरे सोचने से क्या होता है मुझे ऐसा महसूस हो रहा था की कोई मेरी खाल को पकड़ने की कोशिश कर रहा हो ओर मेने दो गरम सलाखे पकड़ रखी हो ये सब सोच ही रहा था की तभी मेरी छाती पर कुछ आ कर टकराया में कुछ समझ पता उस से पहले ही मेरी आँखों के सामने अँधेरा सा छाने लगा मेरे हाथो की पकड़ ढीली होती जरा रही थी "हे भगवन अब ओर क्या दिखाना बाकी है" मेरे मुख से स्वतः ही ये शब्द फूट पड़े ओर मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था की मेरी छाती फट गयी है पर में उसे देखने की भी हालत में नहीं था अपने को सँभालने की भरपूर कोशिश कर रहा था अब तो बस उस पर ही भरोसा था....

बाकी अगले भाग में ज़ल्दी ही .....

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